जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के जनजाति बहुल बस्तर जिले से 40 किलोमीटर दूर घाटी पर बसे कोड़ेनार थाना क्षेत्र में संभवत: एशिया में सर्वाधिक हत्याओं के मामले दर्ज होने का रिकार्ड है। यहां पर छोटी-छोटी बातों को लेकर अपने ही रिश्तेदार, पति-पत्नी और संतानों तक की हत्या कर दी जाती है।
खासकर मुर्गा लड़ाई के बाजार में सरेआम कत्ल करना आम बात है। हत्या करने के बाद आदिवासी थाने में समर्पण कर देते हैं और कई ऐसे मामले होते हैं जिन पर गांव की सहमति अगर बन जाए तो वह मामला थाने तक नहीं पहुंच पाता। गांव का एक अजीब ही रस्म-रिवाज है। हत्या करके जेल जाने वाले आदिवासी परिवार में अगर कोई कमाने वाला नहीं है तो पूरा गांव उस परिवार को पालता है। पचास हजार की आबादी वाले इस किलेपाल विकासखंड में लगभग चालीस हजार माड़िया जनजाति के लोग निवास कर रहे हैं।
पुलिस रिकार्ड के अनुसार, इस इलाके के लगभग 22 गांव ऐसे हैं जहां हर परिवार को कोई एक सदस्य आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आजीवन कारावास की सजा काटकर आने के बाद छोटी-छोटी बातों पर हत्या होने का विरोध करते हुए अपने गांव के लोगों को समझाते हैं और नशे से दूर रहने की सलाह देते हैं।
कोडेनार थाना निरीक्षक दुर्गेश शर्मा ने बताया, “पिछले पैंतीस वर्षो में इस थाने में 600 से अधिक हत्या के मामले दर्ज हो चुके हैं। महज नमक, मुर्गा न मिलने, जादू टोना के संदेह, शराब, सल्फी के कारण इस इलाके में एशिया में सर्वाधिक हत्या के मामले दर्ज हैं।”
उन्होंने बताया कि इस थाने के तहत ग्राम इरपा, छोटे किलेपाल, बोदेनार ऐसे लगभग बीस गांव हैं जो ‘मर्डर जोन’ (हत्याओं का इलाका) में आते हैं। ज्यादातर हत्या शराब, सल्फी के नशे के कारण की जाती है। अज्ञानता, अशिक्षा, जादू टोना का संदेह, अंधविश्वास जैसे इसके मुख्य कारण हैं।
शर्मा ने कहा कि यहां ऐसे भी मामले हैं कि मां या पत्नी द्वारा खाना देर से देने पर उनकी हत्या कर दी और फिर जेल चले गए। इन गांवों के हर परिवार का एक सदस्य आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। 1982 से लेकर अब तक इस थाने में दो सौ से अधिक हत्या के मामले दर्ज किए गए हैं।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार, बास्तानार विकासखंड तीन सौ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें 48,040 आबादी है, जिसमें 44,251 की संख्या में माड़िया जनजाति के लोग निवास करते हैं। 328 अनुसूचित जनजाति हैं, अन्य परिवार 3461 हैं। इस इलाके में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। पुरुष 23,107 तथा महिलाओं की संख्या 24,933 है।
इस इलाके का अध्ययन करने वाले डॉ. सतीष के अनुसार, बस्तर के माड़िया आदिवासियों को विपरीत भगौलिकता में न्यूनतम आवश्यकताओं में जीने वाला ‘आदर्श उपभोक्ता’ माना गया है। वस्तुओं की तुलना में मानव जीवन का मोल कई बार इतना तुच्छ होता है कि पिता के कत्ल के आरोप में बेटे को तो पत्नी के कत्ल के आरोप में पति को मौत के घाट उतार कर समर्पण कर दिया जाता है। जादू टोना, अंध विश्वास यहां की पहचान सी बन गई है।
किलेपाल इलाके के सरपंच पोड़ियामी ने बताया कि शराब, अशिक्षा, क्रोध थोड़ी-थोड़ी बातों में अपने ही रिश्तेदारों की, अपने ही सगे संबंधी की हत्या कर देते हैं और समर्पण कर देते हैं। उन्होंने बताया कि जिन इलाकों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ है, उनमें पिछले पांच सालों से हत्या के मामलो में कमी आई है।
इस इलाके के कांग्रेस विधायक दीपक बैज ने बताया कि माड़िया जनजाति के लोग इस इलाके में निवास करते हैं। बैज ने बताया कि हत्या का मामला अशिक्षा, अंध विश्वास और नशे के कारण होता है, लेकिन अब धीरे-धीरे जिन इलाकों में शिक्षा का विस्तार हो रहा है उन इलाकों में हत्या में कमी आई है और आगे चलकर यह इलाका बस्तर का सबसे शांत इलाका कहा जाएगा।
–आईएएनएस
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