✅ Janmat Samachar.com© provides latest news from India and the world. Get latest headlines from Viral,Entertainment, Khaas khabar, Fact Check, Entertainment.

डीयू में फोरम ने अपनी महत्वपूर्ण बैठक में संविधान दिवस पर एक परिचर्चा आयोजित की । जिसमें संविधान निर्माण की प्रक्रिया में बाबा साहेब के योगदान पर बातचीत की गई।

Advertisement

* संविधान दिवस पर फोरम ने केंद्रीय एवं राज्यों के विश्वविद्यालयों में डॉ. अम्बेडकर चेयर स्थापित करने व अम्बेडकर अध्ययन केंद्र खोलने की मांग का प्रस्ताव पारित किया।
* राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत विश्वविद्यालयों / कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में अम्बेडकर को पढ़ाया जाए ।

फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में शनिवार 26 नवम्बर को एक सादे समारोह में संविधान दिवस बड़े धूमधाम से मनाया। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर भारतीय संविधान के प्रति पूर्ण निष्ठा की शपथ ली गई। कार्यक्रम में विभिन्न कॉलेजों के शिक्षकों व शोधार्थियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। समारोह की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर के.पी. सिंह ने की व कार्यक्रम में मुख्य वक्तव्य के रूप में डॉ. हंसराज सुमन ने विश्व के श्रेष्ठ संविधान के रूप में भारतीय संविधान की व्याख्या की। इस अवसर पर श्री अश्विनी कुमार अहलावत , डॉ. राजेश , डॉ. अशोक कुमार , डॉ.प्रमोद कुमार आदि ने भी संविधान दिवस पर अपने विचार साझा किए । डॉ. हंसराज सुमन ने डॉ.अम्बेडकर , रमाबाई , मान्यवर कांशीराम , सावित्रीबाई फुले , ज्योतिबा फुले , जन नायक संबंधी पांच पुस्तकें भी लोगों को भेंट की ।

फोरम के चेयरमैन व दिल्ली विश्वविद्यालय की एकेडेमिक काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. हंसराज सुमन ने कार्यक्रम में आए सभी लोगों के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि देशभर के सभी केंद्रीय, राज्य व मानद विश्वविद्यालयों में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, शिक्षाशास्त्री, अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता, पत्रकार व आधुनिक भारत के निर्माता बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम पर अम्बेडकर चेयर स्थापित की जानी चाहिए। विश्वविद्यालयों में नयी पीढ़ी को अम्बेडकर और भारतीय संविधान के महत्व को समझाने के लिए अम्बेडकर अध्ययन केंद्र की आवश्यकता हमेशा रहेगी।
दिल्ली विश्वविद्यालय ,जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, इग्नू और राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय आदि किसी भी विश्वविद्यालय में अभी तक अम्बेडकर चेयर नहीं है। इन विश्वविद्यालयों में अम्बेडकर अध्ययन केंद्र खोलने के साथ-साथ स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर विश्वविद्यालय / कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में अम्बेडकर साहित्य लगाने की बहुत जरूरत है। इससे आज की युवा पीढ़ी उनके विचारों और संघर्ष से प्रेरणा लेकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने में सहायक होगी।

Advertisement

उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि अम्बेडकर अध्ययन केंद्र व अम्बेडकर चेयर के लिए केंद्र सरकार व यूजीसी अतिरिक्त ग्रांट भी उपलब्ध कराए जिससे युवा पीढ़ी अम्बेडकर संबंधी अध्ययन और शोधकार्य में विशेष रुचि ले।
डॉ.सुमन ने आगे कहा कि बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने सदैव वंचितों, शोषितों और पिछड़े वर्गों के हकों की लड़ाई लड़ी थी, आज उनके योगदान को आम लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता है । डॉ. सुमन ने बताया है कि बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा निकाले गए मुकनायक को 31 जनवरी 2020 को 100 साल पूरे होने पर देशभर के पत्रकारिता विश्वविद्यालयों/संस्थानों में शताब्दी वर्ष मनाया गया था। डॉ. अम्बेडकर की पत्रकारिता पर सेमिनार हुए , हिंदी, अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं में मुकनायक के 100 साल पूरे होने पर विशेषांक निकाले गए। बाबा साहेब ने 35 वर्षों तक अपने खर्चे से पत्रिकाओं को प्रकाशित करवाया। इन शोध कार्यों के माध्यम से पता चलता है कि डॉ. अम्बेडकर जहाँ अर्थशास्त्र, विधिवेत्ता ,शिक्षा के क्षेत्र में विशेषज्ञ थे वहीं पत्रकारिता पर भी उनका पूरा अधिकार था इसलिए उन्होंने अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पत्रकारिता का क्षेत्र अपनाया। उन्होंने बताया कि जब भी दलित पत्रकारिता की चर्चा होती है उसमें महात्मा ज्योतिबा फुले व डॉ.अम्बेडकर के योगदान की उपेक्षा नहीं की जा सकती है ।

डॉ. सुमन ने अपने संबोधन में बताया है कि बाबा साहेब के विचारों को केवल किसी विशेष समुदायों से नहीं बल्कि समग्रता में समझने की जरूरत है, उनके विचारों में ना केवल समाज के पिछड़े, वंचितों के अधिकारों की बात है बल्कि महिलाओं की मुक्ति का संघर्ष भी मौजूद है। भारत की संसद में पहली बार महिलाओं के अधिकारों के लिए विधेयक भी लेकर आए। उन्होंने आगे यह भी कहा कि भारत में वर्षों की गुलामी झेल रही महिलाओं को उन देशों से पहले अधिकार मिले जो लंबे समय से स्वतंत्र थे। भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहाँ डॉ आंबेडकर के प्रयासों से महिलाओं को देश की आजादी के साथ ही अधिकार मिल गए थे। आज महिला संगठनों / शिक्षिकाओं को भी यह समझने की जरूरत है कि बाबा साहेब के विचारों को समाज में पहुंचाएँ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. के. पी. सिंह ने अपने संबोधन में बताया है कि डॉ. अम्बेडकर किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है बल्कि एक संस्था का नाम है जिन्होंने भारत का नाम केवल उपमहाद्वीप में नहीं बल्कि वैश्विक पटल पर स्थापित किया। उन्होंने बताया कि जब विदेशों में डॉ अम्बेडकर को पढ़ाया जाता है तो भारत के विश्वविद्यालयों में अम्बेडकर स्टरडीज सेंटर खोलकर क्यों न उनके विचारों को भारत के प्रत्येक नागरिक तक पहुंचाया जाये। साथ ही आज की युवा पीढ़ी को डॉ अम्बेडकर के विचारों के माध्यम से ही सही मार्ग पर लाया जा सकता है । आज की युवा पीढ़ी को भारतीय संविधान की प्रस्तावना को समझाने की जरूरत है। भारतीय संविधान सामाजिक और राजनीतिक समझ के लिए महत्वपूर्ण ग्रंथ है, भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान पढ़ना चाहिए, संविधान जागरूकता और सामाजिक सद्भावना का संदेश देता है। इसके मूल अधिकार और कर्तव्य नागरिक को राष्ट्रीयता से जोड़ते हैं। उन्होंने आगे कहा कि जब सरकार नयी शिक्षा नीति के मसौदे तैयार कर रही है और इस वर्ष देशभर के विश्वविद्यालयों में उसे लागू कर रही है तो क्यों न राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शैक्षिक सत्र–2022–23 से विश्ववविद्यालयों / कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में अम्बेडकर को पढ़ाया जाए ताकि आज की युवा पीढ़ी उनके विचारों व सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतार सकें ।

Advertisement
Advertisement

About Author