नई दिल्ली: दिल्ली के वित्तमंत्री मनीष सिसोदिया ने आज प. बंगाल, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल और तेलंगाना के वित्तमंत्रियों के साथ जीएसटी पर चर्चा की। केंद्रीय वित्तमंत्री द्वारा 27 अगस्त को आयोजित जीएसटी परिषद की बैठक के संदर्भ में यह चर्चा आयोजित हुई। श्री सिसोदिया ने आज पांच राज्यों के वित्तमंत्रियों के साथ जीएसटी क्षतिपूर्ति के व्यावहारिक विकल्पों पर चर्चा की। कोरोना संकट के कारण राज्यों के आर्थिक नुकसान की भरपाई के संबंध में केंद्र सरकार के विकल्प को दिल्ली तथा अन्य पांचों राज्यों ने खारिज कर दिया है।
जीएसटी काउंसिल की 27 अगस्त 2020 की बैठक के आलोक में केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय ने कोरोना महामारी और जीएसटी लागू होने के कारण राज्यों के रेवेन्यू में आई कमी की भरपाई हेतु जीएसटी क्षतिपूर्ति विकल्प जारी किए हैं। वित्त मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2020-21 में राजस्व में 2.3 लाख करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका है। इसमें 96,477 करोड़ रुपये का नुकसान जीएसटी के कार्यान्वयन के कारण और शेष कोविड-19 के कारण होने की संभावना है।
प्रथम विकल्प के अनुसार-
1. जीएसटी के कार्यान्वयन के कारण लगभग 97,000 करोड़ रुपये के नुकसान की भरपाई के लिए राज्यों द्वारा ऋण लिया जाएगा। इसके लिए वित्त मंत्रालय एक स्पेशल विंडो के जरिए समन्वय करेगा।
2. विशेष विंडो के तहत लिए गए उधार पर ब्याज का भुगतान सेस की राशि से किया जाएगा। इस संकट अवधि के अंत तक ऐसा किया जाएगा। संकट अवधि के बाद, मूलधन और ब्याज का भुगतान सेस की आय से किया जाएगा। इसके लिए सेस को आवश्यक अवधि तक बढ़ाया जा सकता है। राज्यों को ऋण को अपने स्रोत से इस राशि के भुगतान की आवश्यकता नहीं होगी।
3. स्पेशल विंडो के तहत लिए गए इस ऋण को राज्य के ऋण के रूप में नहीं माना जाएगा।
द्वितीय विकल्प के अनुसार-
1. कोरोना संकट के कारण संभावित नुकसान सहित पूरे नुकसान की संभावित राशि 2,35,000 करोड़ रूपए खुद राज्यों द्वारा बाजार ऋण के माध्यम से लिए जा सकते हैं। भारत सरकार ऐसे कर्ज का मूलधन सेस से चुकाने के लिए एक आफिस मेमोरेंडम जारी करेगी।
2. ब्याज का भुगतान राज्यों द्वारा अपने संसाधनों से किया जाएगा।
भारत सरकार के दोनों विकल्पों पर आज दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल और तेलंगाना के वित्तमंत्रियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से चर्चा की। छहों राज्यों ने भारत सरकार के दोनों विकल्पों को खारिज करने का निर्णय लिया गया क्योंकि ये विकल्प जीएसटी क्षतिपूर्ति अधिनियम और संविधान (101 वां संशोधन) अधिनियम के प्रावधान और भावना के खिलाफ हैं।
छहों राज्यों ने प्रस्ताव पारित किया है कि इस गंभीर स्थिति में कानूनी रूप से उपयुक्त विकल्प है –
1. क्षतिपूर्ति उपकर निधि में 2,35,000 करोड़ रूपये की संपूर्ण अनुमानित कमी की भरपाई भारत सरकार द्वारा आरबीआई अथवा किसी अन्य माध्यम से की जाए।
2. मूलधन के पुनर्भुगतान और ब्याज की देयता वर्ष 2022 से प्रारंभ हो। यह सेस के माध्यम से होनी चाहिए तथा इसके लिए जीएसटी परिषद को सेस लगाने की अवधि को 5 साल आगे बढ़ाना चाहिए या उस समय तक बढ़ाया जाए, जब तक ऋण चुकाने के लिए आवश्यकता हो।
3. इससे अलग-अलग राज्यों को उधार लेने की आवश्यकता नहीं होगी। हर राज्य को स्वयं उधार लेने की क्षमता के मामले में काफी जटिलताएं हैं। खासकर विकल्प नंबर 2 में विभिन्न राज्यों के लिए ब्याज दरों में अंतर भी होगा। यह एक सरल तरीका होगा क्योंकि पूरी उधारी को माल और सेवा कर क्षतिपूर्ति निधि के माध्यम से किया जाना चाहिए जैसा कि माल और सेवा कर (राज्यों को मुआवजा) अधिनियम, 2017 की धारा 10 में प्रावधान है।
4. जीएसटी परिषद द्वारा उक्त राशि को उधार लेने माल और सेवा कर (राज्यों का मुआवजा) अधिनियम, 2017 में माल और सेवा कर (मुआवजा) के तहत सेस लगाने और संग्रह करने के लिए उपयुक्त संशोधन करने के लिए भारत सरकार को अधिकृत किया जाए।
5. इस विकल्प के तहत केंद्र सरकार को राज्य की उधार सीमा में छूट देने या राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को उधार लेने की विशेष अनुमति देने की की आवश्यकता नहीं होगी।
छहों वित्तमंत्रियों ने सहमति व्यक्त की है कि देश के लिए यही एकमात्र व्यावहारिक विकल्प है। इसे जीएसटी परिषद के समक्ष लाया जाएगा।
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