✅ Janmat Samachar.com© provides latest news from India and the world. Get latest headlines from Viral,Entertainment, Khaas khabar, Fact Check, Entertainment.

धर्म संसद में दिए गए नफरत भरे भाषणों के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से मांगा जवाब

Advertisement

नई दिल्ली| सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पत्रकार कुर्बान अली और पटना उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश की याचिका पर उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर हरिद्वार में धर्म संसद में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को 23 जनवरी को अलीगढ़ में होने वाले प्रस्तावित धर्म संसद को रोकने के लिए अपनी याचिका के साथ स्थानीय अधिकारियों से संपर्क करने की अनुमति दी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि धर्म संसद अलीगढ़ में एक और सभा आयोजित करने जा रही है और उन्हें नफरत भरे भाषण देने से रोकने के लिए कुछ निर्देश पारित किए जाने चाहिए, जबकि शीर्ष अदालत को मामले की जानकारी है।

सिब्बल ने जोर देकर कहा कि राज्यों में विभिन्न धर्म संसद निर्धारित हैं, जहां जल्द ही चुनाव होने वाले हैं। नफरत भरे भाषणों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यह इस देश के लोकाचार और मूल्यों के विपरीत है और इन लोगों को एक विशेष समुदाय के खिलाफ बयान देने से रोकने के लिए निवारक कदम उठाने के लिए दबाव डाला जाना चाहिए।

Advertisement

सोमवार को, शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई थी, जिसमें एक एसआईटी द्वारा मामले की स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय जांच की मांग की गई थी।

अधिवक्ता सुमिता हजारिका के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, “नफरत फैलाने वाले भाषणों में जातीय सफाई हासिल करने के लिए मुसलमानों के नरसंहार के लिए खुले आह्वान शामिल थे। यह ध्यान रखना उचित है कि उक्त भाषण केवल घृणास्पद भाषण नहीं हैं, बल्कि एक खुले आह्वान के समान हैं। इस प्रकार उक्त भाषण न केवल हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए एक गंभीर खतरा हैं बल्कि लाखों मुस्लिम नागरिकों के जीवन को भी खतरे में डालते हैं।”

याचिका के अनुसार, विवादित यति नरसिंहानंद द्वारा हरिद्वार में आयोजित दो कार्यक्रमों में और दिल्ली में हिंदू युवा वाहिनी के रूप में स्वयंभू संगठन द्वारा, पिछले साल 17-19 दिसंबर के बीच भारतीय नागरिकों के एक महत्वपूर्ण वर्ग के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने का नफरत भरे भाषण दिए गए थे।

Advertisement

याचिका में कहा गया है कि लगभग तीन सप्ताह बीत जाने के बावजूद, पुलिस अधिकारियों द्वारा उक्त घृणास्पद भाषणों के लिए आईपीसी की धारा 120 बी, 121 ए और 153 बी को लागू न करने सहित कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है।

इसने आगे बताया कि पुलिस अधिकारियों ने हरिद्वार धर्म संसद में भाग लेने वाले 10 लोगों के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की हैं, लेकिन उक्त प्राथमिकी में भी, केवल आईपीसी की धारा 153 ए, 295 ए और 298 लागू की गई हैं।

याचिका में कहा गया, “पुलिस द्वारा घोर निष्क्रियता तब भी सामने आई जब एक पुलिस अधिकारी का वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया, जिसमें उपरोक्त घटनाओं के वक्ताओं में से एक ने धर्म संसद के आयोजकों और वक्ताओं के साथ अधिकारी की निष्ठा को खुले तौर पर स्वीकार किया।”

Advertisement

–आईएएनएस

Advertisement

About Author