न तो हिन्दू न तो मुसलमान पर इंसान हूँ मैं!
न तो मुझे राजनीति की समझ है न,
तो मुझ में फर्जी कोई अकड़ है,
शायद इसी लिए थोड़ा कमज़ोर तो
कभी थोड़ा लाचार हूँ मैं!
मैं न तो हिन्दू न तो मुसलमान पर इंसान हूँ मैं!!
कभी मेरा खून भीड़ में सरहद पर दुश्मन बहाते हैं,
तो कभी मेरे मुल्क में मेरे अपने भीड़ में आकार बहाते हैं!
सबकी बोली और भेश-भूषा से तो इंसान लगते हैं वो,
न जाने क्यों मुझे देखते ही हैवान बन जाते हैं वो!
क्या करू न तो हिन्दू न तो मुसलमान पर इंसान हूँ मैं!
सुबह गुड़िया जब चाय लेकर आती है तो साथ में अखबार भी
पढ़ लेता हूँ मैं, कोई दुर्घटना की खबर पढ़कर थोड़ा निराश हो जाता हूँ,
शाम होते-होते भीड़ की दुर्घटना का शिकार हो जाता हूँ मैं!
आखिर क्या कर सकता हूँ, न तो हिन्दू न तो मुसलमान पर इंसान हूँ मैं!
Written by: Ankur Upadhyay
#Moblynching
और भी हैं
बंगाल में ऊँट किस करवट बैठेगा ?
इमरान का स्वागत क्यों नहीं ?
पापी संतः यह सजा है बहुत कम