नई दिल्ली : स्वराज इंडिया अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने लॉकडाउन में घर लौट रहे मज़दूरों से यात्रा का पूरा किराया वसूल किए जाने पर खेद जताते हुए कहा कि संकट के समय सरकार मज़दूरों की मदद करने की जगह मुनाफ़ा कमा रही है। सरकार का मज़दूरों के किराए में 85% की छूट देने का दावा भी झूठा है। रेलवे भले कह रहा हो कि टिकट काउंटर पर टिकट नहीं बेचे जा रहे हैं, और एडवांस पेमेंट पर टिकट दिए जा रहे हैं। इसका सीधा मतलब है कि अगर राज्य सरकार इस रकम का भुगतान नहीं करती है तो यह पैसा मज़दूरों की जेब से जाएगा। स्टेशन पर सोशल डिस्टेनसिंग बनाये रखने के लिए काउंटर पर टिकट नहीं दे सकती पर किराया वसूल किया जा रहा है।
यात्रा में 85% की छूट देने की बात भी एक तरह का मिथ्या प्रचार है। रेलवे सामान्य दिनों में भी पैसेंजर टिकट पर 53% की छूट देती रही है। अब चूंकि आम दिनों की अपेक्षा यात्री कम हैं, इसलिए इसे बढ़ाकर 85% किया गया है। पर इसके बाद भी यात्रा के किराये में कोई वास्तविक छूट नहीं है। योगेंद्र यादव ने सरकार को याद दिलाते हुए कहा कि साल 2015 के नेपाल भूकम्प के बाद भारत सरकार ने नेपाली नागरिकों को जाने के लिए मुफ्त में रेल चलाई थी। आज सरकार द्वारा ही घोषित लॉकडाउन के संकट में भारतीय नागरिक मुफ़्त रेल यात्रा क्यों नहीं कर सकते? भारतीय रेलवे एक लोक उपक्रम (पीएसयू) है, और इसका ध्येय मुनाफ़ा कमाना नहीं बल्कि जनसेवा होनी चाहिए।
मुख्य प्रश्न यह है कि क्या मोदी सरकार इन बेहाल मजदूरों को भारतीय नागरिक मानती ही नहीं है? क्या ये लोग अब बिहारी, गुजराती, बंगाली, झारखंडी नागरिक हो गए?
क्या भारतीय नागरिक बस वही है जो चीन, ईरान या कुवैत जैसे विदेश में फंसा हो?
यह आशंका भी निराधार है कि किराया फ्री होने से काफी संख्या में लोग घर जाना चाहेंगे। इससे बचने के रेलवे, राज्य सरकार द्वारा पहचान और सूचीबद्ध श्रमिकों को ही मुफ्त यात्रा की इजाज़त दे सकती है। जो प्रवासी मज़दूर हैं और वास्तव में यात्रा की जरूरत है पर पैसे द्वारा भीड़ को नियंत्रित करना सर्वथा अनुचित है। क्योंकि अधिकांश प्रवासी मज़दूर आज आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। इसलिये सरकार को पहले से ही आय और रोज़गार की मार झेल रहे मज़दूरों को घर जाने के लिए कम से कम रेल यात्रा मुफ़्त करनी चाहिए। यह लॉकडाउन में प्रवासी मज़दूरों को राहत देने की दिशा में पहला कदम होगा।
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