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Dakhinpara: Rohingya refugees arrive at Shah Porir Dwip in Dakhinpara ofBangladesh from Rasidong in Myanmar, on Sept 13, 2017. (Photo: bdnews24/IANS)

शरणार्थी संकट : 2015 में हर दिन 34 हजार लोगों का पलायन

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प्रभुनाथ शुक्ल, म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर आए संकट और पलायन के बाद पूरी दुनिया में एक बार फिर शरणार्थी समस्या बहस का मसला बन गई है। पलायनवाद एक समुदाय विशेष की समस्या के बजाय एक वैश्विक विभीषिका के रूप में उभरा है। संयुक्त राष्ट्र भी इस पर गहरी चिंता जता चुका है। लेकिन आंतरिक गृहयुद्ध, जातीय हिंसा के साथ आतंकवाद की वजह से सबसे अधिक लोगों का पलायन हुआ है।

शरणार्थी समस्या मानवीयता से जुड़ा मसला है। इसे धर्म और जाति, समुदाय से जोड़ना गलत होगा। दुनिया भर के मुल्कों का जरिया शरणार्थी समस्या पर उदार रहा है। भारत का मानवीय नजरिया सबसे अलग है। संयुक्त राष्ट्र भारत के प्रयासों की प्रशंसा कर चुका है। लेकिन रोहिंग्या मुसलमानों पर भारत के कदम को कुछ लोग गलत बता रहे हैं और घड़ियाली विलाप का मंचन कर रहे हैं।

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पाकिस्तान में बैठे आतंकी आका म्यांमार और भारत को तबाह करने की धमकी दे रहा है और दुनिया के मुसलमानों से एकजुट होने की अपील कर रहा है। इस तरह की अपीलों से समस्या का हल निकलने वाला नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र की तरफ से 2015 में यूएनएचसीआर की तरफ से जारी ग्लोबल रिपोर्ट में बताया गया कि सिर्फ एक साल में 6.53 करोड़ लोग दुनिया भर में पलायन को मजबूर हुए, जबकि एक साल पूर्व 2014 में युद्ध के दौरान जितने लोग पलायित नहीं हुए थे, उससे कहीं अधिक शरणार्थी शिविरों में शरण को मजबूर हुए।

इस आंकड़े के मुताबिक, हर मिनट 24 लोग जबकि एक दिन में 34,000 लोगों ने पलायन किया। जबकि 12 साल पूर्व यानी 2010 यह स्थिति एक मिनट सिर्फ छह लोगों की थी। दुनिया में विस्थापन की समस्या सबसे अधिक सीरिया युद्ध के बाद शुरू हुई। उस दौरान पलायन में 50 फीसदी तक का इजाफा हुआ, जिसमें आधे से अधिक सीरिया, अफगानिस्तान और सोमालिया के लोग हैं।

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संयुक्त राष्ट्र संघ में 2015 में शरण लेने के लिए जिन देशों के लोगों ने आवेदन किया था उसमें आने वाले कुल आवेदनों में 20 फीसदी सीरिया, दूसरे पायदान पर कोसोवो थे जो सर्विया से अलग हुए थे। यहां से 66 हजार लोगों ने शरण लेने के लिए आवेदन किया। अफगानिस्तान से 63 हजार लोगों ने यूरोप के लिए आवेदन किया। अल्बानिया से 43, इराक से 34, आस्टिया से 27, सर्विया से 22 पाकिस्तान से 20, सोमालिया और यूक्रेन से 13 हजार लोगों ने देश छोड़ कर दूसरी जगह पलायन के लिए आवेदन किया। जबकि जारी आंकड़ों में चार करोड़ से अधिक वे लोग थे जो अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हुए।

रिपोर्ट में सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि 2015 में विस्थापितों में आधे से अधिक मासूम बच्चे थे। संयुक्त राष्ट्र में शरण लेने के लिए 98 लाख से अधिक बच्चों ने आवेदन किया था, जिनके सिर मां-बाप का साया उठ गया था वे आंतरिक, जातीय या फिर आतंकवाद जैसी हिंसा में अनाथ हुए थे।

शरणार्थी समस्या पर निश्चित तौर पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र लोगों को संवैधानिक अधिकार भी दिए हैं। कोई भी व्यक्ति अगर किसी देश में शरण लेता है, तो उसके मानवीय अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। लेकिन अगर वह मानवीयता की आड़ में जीवनयापन की मांग करे और उसी देश के खिलाफ आतंकी साजिश में शामिल हो कर षडयंत्र रचे फिर यह कहां का न्याय है। जिस तरह रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार की सेना और बौद्धों को निशाना बनाया, जिसके बाद पलायित होने को मजबूर हुए।

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भारत में 40 हजार से अधिक रोहिंग्या मुसलमान शरण लिए हुए हैं। भारत सराकर ने साफ कर दिया है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों को शरण नहीं देना चाहती है। देश की सर्वोच्च अदालत में इसकी सुनवाई भी चल रही है। सरकार के इस रुख पर राजनीति की जा रही है। पाकिस्तान में बैठे आतंकी आका अजहर मूसद दुनिया के मुसलमानों को एकजुट होने की अपील कर रहा है। उसे पाकिस्तान और बंग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदू नहीं दिखाई दे रहे हैं, जिनकी बहू बेटियों से खुलेआम दुष्कर्म किए जाते हैं। जबरन धर्म पर्विन कर शादियां की जाती हैं।

हिंदू मंदिरों को तोड़ा जाता है। पाकिस्तान में भी तीन लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमान शरण लिए हैं, फिर पाकिस्तान उन्हें मुसलमान और इस्लाम के नाम पर ही क्यों नहीं नागरिकता प्रदान करता। शरणार्थी शिविरों में रहने को रोहिंग्या क्यों मजबूर हैं। दुनिया भर में 56 से अधिक मुस्लिम देश हैं। क्यों नहीं रोहिंग्या को शरण के लिए आमंत्रित करते हैं। एक भी इस्लामिक देश ने इस समस्या पर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है।

कश्मीर से आतंकवाद की वजह से लाखों पंडित दिल्ली और दूसरे राज्यों में शरण लिए हुए हैं। अपने ही देश में वह पलायित होने को मजबूर हुए। रोहिंग्या की पीड़ा उन्हें चुभती है, लेकिन कश्मीरी पंडित नहीं दिखते। पाकिस्तान में बैठे आतंकी आका और अलगाववादी अलग कश्मीर की मांग कर रहे हैं। वह भारत के संविधान और कानून को मानने के लिए तैयार नहीं है। वह तिरंगा नहीं लहराना चाहते। वह धारा 34ए को जिंदा रखना चाहते हैं। फिर रोहिंग्या पर सरकार हमदर्दी दिखा देश के एक और विभाजन की आवाज क्यों बुलंद करवाए। आतंकी आका और पाकिस्तान रोहिंग्या की आड़ में पूर्वी पाकिस्तान के विभाजन का बदला लेना चाहते हैं, जिसे भारत कभी कामयाब नहीं होने देगा।

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भारत से रोहिंग्या मुसलमानों को निकालना भी एक समस्या है। आखिर उन्हें कहां और किस देश में भेजा जाएगा। यह भी एक बड़ा सवाल है। लेकिन शरणार्थी समस्या से लिए आज के संदर्भ में सबसे अधिक जिम्मेदार इस्लामिक आतंकवाद रहा है। आईएसआई और पाकिस्तान में बैठे हिजबुल मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान जैसे दुनिया के आतंकी संगठन आतंकवाद के जरिए दुनिया भर में शरीयत का झंडा लहराना चाहते हैं, जिसकी वजह से आतंकवाद बढ़ रहा है। इसकी वजह से शरणार्थी समस्या वैश्विक संकट बन गई है।

आतंकवाद के खिलाफ दुनिया के मुल्कों को एक मंच पर आना होगा। संयुक्तराष्ट्र को आतंकवाद से लड़ने के लिए वैश्विक सेना बनानी होगी। वक्त रहते अगर इसे संभाला नहीं गया तो आने वाला दौर और कठिन होगा। रोहिंग्या पर भारत सरकार की तरफ से उठाया गया कदम देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ा सवाल है। इस पर कोई तर्क नहीं किया जाना चाहिए। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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–आईएएनएस

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