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सरकार रोने-गाने से नहीं, लोहे से चलती है

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक,

मुरादाबाद की अपनी सभा में नरेंद्र मोदी फिर बरसे। अपने विरोधियों पर बरसे। लेकिन मोदी की भी क्या गजब की अदा है? जहां विरोधी उनके सामने बैठे होते हैं याने संसद, वहां तो वे मौनी बाबा बने रहते हैं और अपने समर्थकों की सभा में वे दहाड़ते रहते हैं। वे कहते हैं कि लोग उन्हें गुनाहगार क्यों कहते हैं? मोदी को गुनाहगार कौन कह रहा है? मैंने अपने परसों के लेख में यही लिखा था कि यह नोटबंदी एक गुनाह बेलज्जत सिद्ध हो रही है। याने इसका कोई ठोस लाभ न अभी दिख रहा है और न ही भविष्य में।

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हां, आम लोग बेहद परेशान हैं। वे लोग, जिनके पास काला धन तो क्या, सफेद धन ही इतना होता है कि वे रोज़ कुआ खोदते हैं और रोज पानी पीते हैं। नोटबंदी के पीछे मोदी की मन्शा पर किसी को भी शक नहीं करना चाहिए। यह देशभक्तिपूर्ण कार्य हो सकता था। इससे देश का बड़ा कल्याण हो सकता था लेकिन इसे बिने सोचे-विचारे लागू कर दिया गया। यह अमृत अब जहर बनता जा रहा है। यह काले धन का दुगुना बड़ा स्त्रोत बन गया है। विरोधियों ने इसका फायदा उठाने की जी-तोड़ कोशिश की है। वे मोदी की मन्शा पर शक कर रहे हैं। वे नोटबंदी का उद्देश्य यह बता रह हैं कि बैंकों में जमा होनेवाले अरबों-खरबों रुपए को मोदी सरकार बड़े-बड़े पूंजीपतियों को बहुत कम ब्याज पर हथियाने देगी।

 

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इस तरह के आरोप निराधार हैं लेकिन यह तो सत्य है कि नोटबंदी ने देश में अपूर्व भ्रष्टाचार को जन्म दिया है। करोड़ों साधारण लोगों ने जन-धन के नाम पर अपने हाथ काले कर लिये हैं। हमारे बैंक रिश्वत और भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं। अब मोदीजी को एक नई तरकीब सूझी है। वे जन-धन खातेवालों से कह रहे हैं कि जिन्होंने उनके नाम से अपना पैसा इन खातों में जमा किया है, उसे वे न लौटाएं!

 

किसी देश का प्रधानमंत्री क्या इतना असहाय-निरुपाय भी हो सकता है कि लोगों में अनैतिकता फैलाए, उनकी भरोसेमंदी खत्म् कर दे और समाज में मरने-मारने का माहौल फैला दे? यदि सरकार है और उसमें दमखम है तो जन-धन खातों में जो मोटी राशियां 8 नवंबर के बाद जमा हुई हैं, उन्हें जब्त कर ले। सिर्फ उन्हें बख्श दे, जो बता सकें कि उसका भरोसे लायक स्त्रोत क्या है। जिनका काला धन जब्त हो, उन पर जुर्माना और सजा दोनों हो। सरकार रोने-गाने से नहीं, कसीदे और दोहे से नहीं, लोहे से चलती है।

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