दिल्ली पुलिस ने अपने द्वारा दर्ज मुकदमों की संख्या और तैयार की गई चार्जशीट की ओर इशारा करते हुए यह दावा किया है कि उनकी जांच सांप्रदायिक पक्षपात से खाली और पेशेवर है। लेकिन यह दावे हकीकत से बहुत दूर हैं। दरअसल मुसलमानों और हिंदुओं के खिलाफ दर्ज मुकदमों में सच्चाई बहुत कम है। पुलिस ने महिलाओं सहित ऐसे मुसलमानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया है जिनका इन घटनाओं से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है और उन पर यूएपीए और देशद्रोह जैसे दमनकारी कानूनों के तहत मामले दर्ज किए गए हैं।
हालांकि हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखने वाले दंगाईयों पर बहुत मामूली मुकदमे लगाए गए हैं, जिनमें उन्हें या तो थाने से ही ज़मानत मिल गई या वे कुछ दिनों में रिहा हो गए। सही तस्वीर पाने के लिए, दिल्ली पुलिस को हर समुदाय के हिसाब से मुकदमों और हर आरोपी पर लगाई गई धाराओं, गिरफ्तार लोगों की संख्या, अभी भी जेल में बंद लोगों की संख्या और ज़मानत पाने वाले लोगों का विवरण जारी करना चाहिए। साथ ही दिल्ली पुलिस को वे सभी नाम उनकी पार्टी/संगठन और पद के साथ सबके सामने लाने चाहिएं जिन्हें एफआईआर में शामिल किया गया है। हमारे नागरिक समाज का यह अधिकार है कि वह जाने-पहचाने आरएसएस-बीजेपी नेताओं और कैडरों के मुकदमों की स्थिति को जानें, जिन्होंने खुलेआम निर्दोष मुसलमानों, उनके घरों, दुकानों और मस्जिदों पर हमला करने में लीड रोल अदा किया है। दरअसल दिल्ली पुलिस ने दिल्ली में सीएए-विरोधी प्रदर्शनों में सक्रियता के साथ शामिल छात्र कार्यकर्ताओं, नेताओं और समूहों को निशाना बनाकर अपने सांप्रदायिक तथा राजनीतिक पक्षपात का सबूत दिया है।
ओ.एम.ए. सलाम ने कहा कि उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए, पुलिस का अपनी निष्पक्षता और पेशेवराना अंदाज़ का दावा बिल्कुल बेतुका है। उन्होंने मांग की कि अगर दिल्ली पुलिस चाहती है कि उनकी बातों को गंभीरता से लिया जाए, तो उन्हें तत्काल रुप से अपने रिकॉर्ड्स को सीधे तौर पर और साफ-साफ देश के सामने रखना चाहिए।
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