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आईपीएस खाकी को खाक में मत मिलाओ

 इंद्र वशिष्ठ 
महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता। आचार्य चाणक्य की यह बात कमिश्नर और कई आईपीएस अफसरों पर खरी उतरती है।
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की संविधान, कानून के प्रति निष्ठा और पेशेवर काबिलियत में लगातार गिरावट सामने आ रही है। यह बहुत ही गंभीर और चिंताजनक स्थिति है। यह स्थिति सभ्य समाज के लिए तो बहुत ही खतरनाक है। सत्ता के लठैत बन कर कमिश्नर या आईपीएस किस स्तर तक गिर सकते हैं। इसका अंदाज़ा इन मामलों से लगाया जा सकता है।
अफसरों की करतूतें देख कर ऐसा लगता है कि आईपीएस अफसरों ने ही खाकी को खाक में मिलाने की ठान रखी है।
पिछले साल फरवरी में हुए दंगों के लिए दिल्ली पुलिस के अनेक पूर्व कमिश्नरों तक ने खुल कर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को जिम्मेदार ठहराया। अमूल्य पटनायक तो दंगों के दाग के साथ 28 फरवरी 2020 को सेवानिवृत्त हो गए। उनके बाद स्पेशल कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को कार्यवाहक कमिश्नर बनाया गया। 30 जून 2021 को रिटायर हो रहे सच्चिदानंद श्रीवास्तव को 21 मई 2021 को  कमिश्नर नियुक्त किया गया है।
दंगों की जांच में पुलिस की भूमिका की पोल लगातार अदालत में अनेक मामलों में खुल चुकी  है। कमिश्नर के पुख्ता सबूतों के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तार करने के दावे के अदालत में धज्जियां उड़ रही हैं।
देश के मशहूर रिटायर्ड आईपीएस अफसर जूलियो रिबैरो द्वारा दंगों के मामलों की जांच में पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाना कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त है।
विपक्षी दलों और पीड़ित समुदाय द्वारा पुलिस पर सत्ता के लठैत बन कर झूठे मामलों में गिरफ्तार करने के आरोप लगाना तो आम बात है लेकिन जब कई पूर्व पुलिस कमिश्नर और देश के मशहूर आईपीएस अफसर तक कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान लगाए तो समझ लेना चाहिए कि कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की भूमिका बहुत ज्यादा ही गड़बड़ है।
दंगों के एक मामले में पुलिस की तफ्तीश की पोल खोलते हुए कड़कड़डूमा अदालत के एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने रुसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की किताब ‘अपराध और सजा’ के हवाले से कहा कि “सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते हैं और सौ संदेहों को एक साक्ष्य/प्रमाण नहीं बना सकते”। इसलिए दोनों आरोपियों को हत्या की कोशिश (धारा 307) और शस्त्र अधिनियम के आरोप से मुक्त (डिस्चार्ज) किया जाता है।’’
 कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव कितने काबिल है। इसका पता उनके कार्यकाल में घटित इन मामलों से चलता है।
किसानों की ट्रैक्टर परेड से कुछ किसान लालकिले तक पहुंच गए। लालकिले पर निशान साहिब फहराया और पुलिस पर हमला भी किया। दिल्ली की सीमाओं से ये किसान इतना लंबा रास्ता तय कर लालकिला कैसे पहुंच गए? लालकिले पर झंड़ा फहराना अगर शर्मनाक अपराध है तो इसके लिए कमिश्नर ही जिम्मेदार है। किसानों को लालकिला पहुंचने से रोकने में विफल रहने के लिए पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को पद से हटाया जाना चाहिए था। क्योंकि पुलिस कमिश्नर के गैर पेशेवर रवैये ने  दिल्ली के लोगों की जान को खतरे में डाल दिया था। कमिश्नर ने पुलिस के जवानों की जान के साथ भी खिलवाड़ किया। लालकिले पर खाई में कूद कर सिपाहियों ने अपनी जान बचाई। उन सिपाहियों के शरीर पर न तो सुरक्षा कवच (बॉडी प्रोटेक्टर) था ना ही हेलमेट। क्या किसी रैली या आंंदोलन में सिपाहियों को बिना सुरक्षा कवच या हेलमेट के तैनात किया जा सकता है।
इस घटना के बाद पुलिस कमिश्नर ने बताया कि 25 जनवरी की देर शाम को उन्हें ये समझ आया कि वे (किसान) अपने वायदे से मुकर रहे हैं। जो आतंकवादी और आक्रामक लोग (एगरैसिव और मिलिटेंट एलिमेंट्स) उनमें थे उनको उन्होंने आगे कर दिया है। मंच पर भी उनका कब्जा हो गया है। भड़काऊ भाषण दिए गए हैं। इससे उनकी मंशा शुरू में ही समझ मेंं आ गई।
पुलिस कमिश्नर के इस खुलासे से कमिश्नर की काबिलियत और भूमिका पर ही सवालिया  निशान लग जाते हैं। कमिश्नर का यह बयान ही उन्हें पद से  हटाने के लिए पर्याप्त था।
सबसे पहला सवाल तो यह कि जब यह पता चल गया था कि आंदोलन का नेतृत्व मिलिटेंट के हाथों में चला गया है तो पुलिस ने ट्रैक्टर परेड को रद्द करने की तुरंत घोषणा क्यों नहीं की।आतंकियों को पकड़ा क्यों नहीं। हालांकि कमिश्नर आज तक भी उन आतंकवादियोंं का नाम तक नहीं बता पाए है। इससे लगता है कि उन्होंने अपनी विफलता को छिपाने के लिए मिलिटेंट की कहानी सुनाई थी।
कमिश्नर,आईपीएस का अक्षम्य अपराध। 
बेकसूर लड़की को देशद्रोही बना दिया।- 
जलवायु /पर्यावरण कार्यकर्ता बेकसूर दिशा रवि को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर कमिश्नर और आईपीएस अफसरों ने अक्षम्य अपराध किया है। कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, अपराध शाखा के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन और संयुक्त पुलिस आयुक्त प्रेमनाथ ने दिशा रवि के देशद्रोही होने की “कहानी” मीडिया में बताई।जज धर्मेंद्र राणा ने न्याय का लट्ठ गाड दिया।- लेकिन अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली दिशा रवि को जमानत देकर दुनिया के सामने पुलिस के झूठ का पर्दाफाश कर दिया। जज धर्मेंद्र राणा ने दिशा को देशद्रोही बताने के पुलिस के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि टूल किट में देशद्रोह जैसी कहीं कोई बात ही नहीं है। सरकार से असहमति रखना अपराध नहीं है। जज धर्मेंद्र राणा ने इस तरह न्याय व्यवस्था में लोगों के भरोसे को कायम किया।
इस मामले से इन तीनों आईपीएस अफसरों की काबिलियत और चरित्र की पोल खुल गई।
 वैसे “देशद्रोही” दिशा रवि की तस्वीर इन अफसरों को अपने घर में लगानी चाहिए। ताकि इनके परिवार और रिश्तेदार भी इन अफसरों की इस “बहादुरी” को देख देख कर गर्व से अपना सीना गर्व से चौड़ा कर सके।
21 साल की दिशा को देशद्रोह के मामले में फंसा देने से पता चलता है कि किसी को भी देशद्रोह के मामले में फंसा देना निरंकुश आईपीएस के लिए कितना आसान हो गया है। आईपीएस अफसरों ने खाकी वर्दी को खाक में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसरों मेंं अगर जरा भी शर्म बची है तो उन्हें दिशा से ही नहीं पूरी दुनिया से माफी मांगनी चाहिए। पुलिस ने जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के टूलकिट को ट्वीट करने के बाद ही एफआईआर दर्ज करके इस मामले का खुद ही अंतरराष्ट्रीयकरण किया। पुलिस की इस हरकत ने विदेश में भारत की छवि खराब कर दी।
 देशद्रोही ट्वीट-पुलिस रस्सी का सांप बना देती है यह कहावत अब पुरानी हो गई है। एक ट्वीट से कैसे किसी को देशद्रोही बनाया जा सकता है इसका उदाहरण दिशा रवि का मामला है। पुलिस अकेडमी में भी इस उदाहरण को बताया जाना चाहिए। कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव,आईपीएस प्रवीर रंजन और प्रेमनाथ के ” देशद्रोही ट्वीट ” विषय पर अकेडमी में लेक्चर भी आयोजित किए जाने चाहिए। ताकि प्रशिक्षण लेने वाले आईपीएस अपने इन वरिष्ठ आईपीएस की वीरता और पेशेवर “काबिलियत” को जान सके।
आईपीएस को जेल भेजा जाए – देशद्रोह के झूठे मामले में एक मासूम लड़की को फंसाने वाले इन अफसरों को अदालत द्वारा जेल भेजा जाए तो ही सही मायने में दिशा के साथ न्याय होगा। तभी सत्ता के लठैत बने आईपीएस ऐसे अपराध करना बंद करेंगे।
अपराध शाखा के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन का लिखा एक पत्र भी उनकी पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान लगाने के लिए पर्याप्त है। प्रवीर रंजन ने पत्र में दंगों के मामले की जांच करने वाले अफसरों से कहा गया है कि हिंदु आरोपियों की गिरफ्तारी से इस समुदाय में रोष है इसलिए किसी को गिरफ्तार करते समय विशेष सावधानी बरतें। हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश कैत ने ऐसा पत्र लिखने पर फटकार लगाई। हाईकोर्ट ने प्रवीर रंजन से कहा कि वह अपने और पूर्ववर्ती अफसरों की ओर से लिखे गए ऐसे पांच पत्र अदालत को दिखाए।
टूलकिट मामले और इस पत्र से अंदाजा लगाया
अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में अगर वह कमिश्नर बने तो क्या होगा।
मौलाना साद क्या अब पाक साफ हो गया?-
निजामुद्दीन स्थित मरकज में तब्लीग़ी जमात के जमावड़े को लेकर पुलिस ने मौलाना साद के खिलाफ पिछले साल गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था। लेकिन आज तक भी मौलाना को गिरफ्तार करना तो दूर उससे पूछताछ तक नहीं की गई। जबकि शुरु में पुलिस ने ऐसा प्रचार किया जैसे कोरोना फैलाने के लिए मौलाना साद और तब्लीगी जमात ही जिम्मेदार है। इस मामले से भी आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है। क्योंकि मौलाना साद अगर कसूरवार है तो उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया।
आईपीएस पर भी एफआईआर हो-
दंगों के जिन मामलों में अदालत में पुलिस की कहानी की झूठी निकली है। उन मामलों के जांच अधिकारियों और संबंधित आईपीएस अफसरों के खिलाफ भी तो एफआईआर दर्ज की ही जानी चाहिए। क्योंकि किसी को झूठा फंसाना तो साफ तौर पर साजिशन किया गया अपराध होता है।
चिड़ीमार स्पेशल सेल- आतंकवादियों से निपटने का दावा करने वाला स्पेशल सेल अब चिड़ीमार बन चिड़िया यानी ट्विटर को डराने का काम करने लगा है। भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस के एक कथित टूल किट को लेकर ट्वीट कर दिया। ट्विटर ने उस पर मैनुप्लेटेड  टैग कर दिया। जिसमें तथ्य सही न हो या कुछ जोड़ तोड़ की गई हो उसे ट्विटर द्वारा मैनुप्लेटेड घोषित किया जाता है।
अब ऐसे मामले में भी पुलिस इस तरह सक्रिय हो गई, जैसे किसी आतंकवादी को पकड़ने जाना है। स्पेशल सेल की पूरी टीम ट्विटर के दफ्तर में और कांग्रेस के नेता को नोटिस देने के लिए भेजी गई। सिर्फ़ नोटिस देने के लिए स्पेशल सेल के 5-10 पुलिसकर्मियों को भेजने से यह लगता है कि पुलिस उन्हें डराना चाहती है। क्योंकि नोटिस देने जैसा मामूली काम तो एक सिपाही द्वारा भी बखूबी किया जाता है।
कमिश्नर बताएं क्या सत्ताधारियों का अपराध, अपराध नहीं होता?- 
मंत्री अनुराग ठाकुर का गोली मारो सालों/गद्दारों को, सांसद प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के भडकाऊ बयानों पर पुलिस ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
जनवरी 2020 में जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में घुस कर गुंडों ने छात्रों के साथ मारपीट की। इस वारदात का वीडियो दुनिया ने देखा एबीवीपी से जुुुड़ी कोमल शर्मा का नाम भी आया। यह सब जगजाहिर है लेकिन संविधान और कानून को ताक पर रख खाकी को खाक में मिलाने वाले आईपीएस अफसरों की नजर में यह सब अपराध मायने नहीं रखता। इसलिए आज तक इन मामलों में किसी नेता या किसी हमलावर को गिरफ्तार नहीं किया गया।
दूसरी ओर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में लाइब्रेरी में घुसकर भी इसी पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज कर अपनी बहादुरी दिखाई थी।
मोदी जी हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेज दी।” ऐसे पोस्टरोंं पर भी सच्चिदानंद
श्रीवास्तव द्वारा गरीब पोस्टर चिपकाने वालों  को गिरफ्तार करवाना शर्मनाक है।
रामदेव के सामने पुलिस का पवनमुक्तासन।- सागर पहलवान की हत्या के बाद सुशील पहलवान हरिद्वार गया था। पुलिस सूत्रों के अनुसार रामदेव ने एक संयुक्त पुलिस आयुक्त को सुशील की मदद करने के लिए फोन किया था। इस पत्रकार ने 12 मई को ही यह उजागर कर दिया था कि रामदेव ने अगर किसी संयुक्त आयुक्त को फोन किया है तो वह रामदेव की ही जाति के सुरेंद्र सिंह यादव भी हो सकते हैं। क्योंकि सुरेंद्र सिंह यादव के नेतृत्व में ही इस मामले की जांच की जा रही थी।
वैसे रामदेव ने जिस भी आईपीएस को फोन किया हो वह अगर तुरंत हरिद्वार पुलिस को फोन कर देता तो सुशील पकड़ा जाता।
इस मामले में रामदेव और आईपीएस का जिक्र सामने आया। लेकिन पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की चुप्पी से साफ है कि रामदेव ने सुशील को पनाह दी थी।
एक लड़की को देशद्रोह के झूठे मामले में गिरफ्तार करने वाले बहादुर कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की रामदेव का नाम आते ही फूंक निकल गई। रामदेव को सुशील को पनाह देने के आरोप में गिरफ्तार करना तो दूर  आईपीएस उसका नाम तक लेने से डरते हैं।
चिड़ीमार कमिश्नर का स्पेशल सेल सुशील पहलवान को पकड़ने में नाकाम रहा तो उसका आत्म समर्पण करा लिया।
आईपीएस खुद को बहुत अच्छा कहानीकार होने के मुगालते में जीते हैं लेकिन सुशील पहलवान को स्कूटी पर घूमते हुए पकड़ने की कहानी ने ही इनकी पोल खोल दी। लॉकडाउन में बिना हेलमेट स्कूटी पर घूम घूम कर सुशील शायद खुद ही पुलिस को खोज रहा था।
इस मामले में रोहिणी पुलिस ने भी हरियाणा के बदमाशों को आधी रात में घेवरा में पैदल घूमते हुए गिरफ्तार करने की कहानी बना कर अपनी खिल्ली उड़वाई। यह भी आत्म समर्पण ही था।
असल में श्रेय,प्रचार इनाम और अपने को काबिल दिखाने के चक्कर में अफसर ऐसी हास्यास्पद कहानी गढ़ देते है। इसीलिए अदालत में पुलिस की कहानियों की धज्जियां उड़ती हैं।
टूलकिट मामले में मीडिया में जोर शोर से कहानी बताने वाले कमिश्नर और आईपीएस अफसरों ने सुशील पहलवान के बारे में मीडिया में बोलने की हिम्मत नहीं दिखाई।
 सुशील पहलवान के नौकर की 5 जनवरी 2018 को  रहस्यमय हालत में मौत हो गई। स्टेडियम से जुड़े ल़ोगों ने बताया कि माडल टाउन पुलिस ने मामला रफा दफा कर दिया। इस मामले में भी कमिश्नर और आईपीएस अफसरों ने चुप्पी साध रखी हैं।
वैसे सागर पहलवान हत्याकांड मामले की तफ्तीश पर शुरुआत से ही सवालिया निशान लग रहा है। अब अदालत में पता चलेगा कि अपराध शाखा के धुरंधरों ने सुशील के खिलाफ सबूत जुटाने में कितनी ईमानदारी से काम किया है।
26 जनवरी 2021 को एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें सुरेंद्र सिंह यादव कह रहे हैं कि इनको (किसानों) को शांति से समझाओ, वरना ये हमारे ऊपर से जाएंगे। सुरेंद्र सिंह यादव ने जय जवान जय किसान के नारे लगाए और पुलिस कर्मियों से भी लगवाए। अनेक वरिष्ठ आईपीएस अफसरों ने सुरेंद्र सिंह यादव की इस हरकत को पुलिसवालों का मनोबल तोड़ने वाला बताया है। अफसरों का कहना है कि ऐसी कायराना हरकत करने वाले अफसर को तो फोर्स और सेना मे बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाता है। ऐसे अफसर को सेना में तो नौकरी से निकाल दिया जाता है।
जब सुरेंद्र यादव जैसे आईपीएस कमिश्नर की टीम मे हैं तो भला किसानों को लालकिला जाने से कौन रोक सकता था। वैसे सुरेंद्र यादव मातहतों को जलील करने के लिए भी बदनाम है।
पूर्वी जिला के एडिशनल डीसीपी संजय सहरावत के खिलाफ सीबीआई ने शिक्षा,जन्म के जाली प्रमाण पत्र से नौकरी हासिल करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है। लेकिन कमिश्नर ने सहरावत के खिलाफ कोई कार्रवाई  नहीं की।
साल 2020 में डीसीपी एंटो अल्फोंस तबादला होने पर द्वारका जिले से तीन टच स्क्रीन कंम्यूटर अवैध रुप से अपने साथ ले गए थे। डीसीपी द्वारा किए गए कथित गबन के इस मामले को इस पत्रकार ने उजागर किया।
इस पत्रकार से एंटो ने कंम्यूटर लाने से साफ इनकार किया था। लेकिन कमिश्नर ने जांच कराई तो कंम्यूटर एंटो के पास ही मिले।
मामला उजागर हो जाने पर कंम्प्यूटर एंटो को री एलोकेट करके बचा लिया गया।
पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने एंटो अल्फोंस के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
पिछले साल ही पश्चिम जिले के तत्कालीन एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा के निजी स्टाफ द्वारा सट्टेबाजों से वसूली का मामला सामने आया था। इस मामले में आईपीएस समीर शर्मा की भूमिका संदिग्ध थी। लेकिन समीर शर्मा के खिलाफ कोई  कार्रवाई नहीं की गई। समीर शर्मा का सिर्फ तबादला करके बचा लिया गया।
अगर कोई काबिल कमिश्नर होता तो उपरोक्त मामलों में सख्त कार्रवाई करता।
सच्चिदानंद श्रीवास्तव के राज में आम आदमी की तो क्या पुलिसकर्मियों तक की एफआईआर सही दर्ज नहीं की गई ।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एलौपैथी और डॉक्टरों के बारे में आपत्तिजनक बयान देने  वाले रामदेव के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए शिकायत दी। लेकिन कमिश्नर ने कोरोना योद्धाओं की एफआईआर तक दर्ज नहीं की।
 माडल टाउन के दुकानदार सतीश गोयल की बकाया रकम मांगने पर ओलंपियन सुशील पहलवान और उसके साथियों द्वारा पिटाई करने का मामला सामने आया है।
सतीश ने पिछले साल 8 सितंबर को इस मामले की शिकायत माडल टाउन थाने में की थी। लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की।
माडल टाउन में दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त डीसीपी सतवीर दहिया के बेटे दीपक को बदमाश काला जठेड़ी ने रंगदारी के लिए धमकी दी। दीपक ने माडल टाउन थाने में 25 दिसंबर 2020 को शिकायत दी। लेकिन पुलिस ने उसकी भी एफआईआर 6 दिन बाद दर्ज की।इस मामले में भी सुशील पहलवान का नाम आया है। इन सभी मामलों से आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। लेकिन कमिश्नर ने संबंधित अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
ट्रैफिक पुलिस में तैनात हवलदार महेंद्र की छाती में चाकू मारा गया। केशव पुरम थाना पुलिस ने हत्या की कोशिश का मामला दर्ज करने की बजाए धारा 323 के तहत साधारण मारपीट का मामला दर्ज कर दिया। ट्रैफिक पुलिस में तैनात आईपीएस अफसर ने तत्कालीन डीसीपी विजयंता गोयल को सारी बात बताई। इसके बावजूद हत्या की कोशिश का मामला दर्ज नहीं किया गया।
पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव और उनके मातहत दर्जनों आईपीएस ही नहीं उनकी पत्नियां तक भी मास्क और दो गज दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ाते दिखाई दिए हैं।
ऐसे आईपीएस अफसरों को सात लाख से ज्यादा लोगों के चालान काटने का नैतिक रुप से कोई हक नहीं बनता है।
 गृहमंत्री अमित शाह पुलिस मुख्यालय में बिना मास्क के पहुंचे तो कमिश्नर ने गुलदस्ते से उनका स्वागत किया। अगर कोई ईमानदार कमिश्नर होता तो गृहमंत्री का चालान काट कर अपने कर्तव्य पालन की मिसाल बनाता।

कमिश्नर पुलिस मुख्यालय में बैठक में अपने स्पेशल कमिश्नरों से तो दस-पंद्रह फीट की दूरी पर बैठते हैं। लेकिन गृहमंत्री अमित शाह, गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी और सांसद प्रवेश वर्मा तक के साथ सट कर बैठते और खड़े होते हैं। मॉस्क, दो गज दूरी के नियम का उल्लंघन करने वाले कमिश्नर को क्या अपने स्पेशल कमिश्नर से ही कोरोना संक्रमण होने का खतरा है।

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