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भारत-पाक भलमनसाहत?

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक,
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ को हमारे प्रधानमंत्री ने उनके जन्म-दिन पर डिजिटल बधाई दी और उधर पाकिस्तानी सरकार ने इस अवसर पर हमारे 220 गिरफ्तार मछुआरों को रिहा कर दिया। यह दोनों पक्षों की भलमनसाहत का प्रतीक है। बस मुझे डर यही है कि हमारे कट्टर राष्ट्रवादी और मोटी समझ के लोग मोदी को देशद्रोही न कहने लगें।

 

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प्रधानमंत्री बनते ही मोदी ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए क्या-क्या नहीं किया? क्या किसी प्रधानमंत्री ने अपने शपथ-समारोह में कभी पड़ौसी राष्ट्रों के नेताओं को बुलाया? नहीं। मोदी ने इतिहास बनाया। नवाज शरीफ और सरताज अजीज भी आए। उन दोनों ने मुझे जून 2014 में ही कहा कि यदि मोदीजी ‘सार्क’ सम्मेलन के पहले ही इस्लामाबाद की औपचारिक-यात्रा कर लें तो हम उनका भव्य स्वागत करेंगे। मियां नवाज ने भी कोई कमी नहीं रखी। उन्होंने मोदी की माताजी के लिए उपहार भेजे। लग रहा था कि भारत-पाक इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत हो रही है लेकिन हमारी नौसिखिया सरकार ने कूटनीति के समुद्र में छलांग तो लगा दी लेकिन उसने सिद्ध कर दिया कि उसे तैरना नहीं आता।

 

उसने सिर्फ इस मुद्दे पर सरताज अजीज की भारत-यात्रा टलवा दी कि पाकिस्तानी उच्चायुक्त हुर्रियत के नेताओं से क्यों मिल लिया? फिर मोदी ने पहल की और अब से ठीक साल भर पहले वे अचानक ही काबुल से लाहौर (रायविंड) चले गए, मियां नवाज़ की नातिन के विवाह में शामिल होने! लेकिन फिर हफ्ते भर में ही पठानकोट और बाद में उड़ी के आतंकी हमले ने सब किया-कराया चौपट कर दिया। हमारी तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक (जिसे मैं फर्जीकल स्ट्राइक कहता हूं) के प्रचार ने भी कोई फायदा नहीं किया। गृहमंत्री राजनाथसिंह इस्लामाबाद गए और सरताज अजीज अमृतसर आए लेकिन बात कुछ बनी नहीं।

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अब इस 25 दिसंबर को दोनों देशों के बीच तार फिर जुड़ा-सा लगने लगा है। दोनों देशों के नेताओं के दिल में यदि सद्भावना नहीं होती तो क्या यह संभव था? भारत के नेताओं और हमारे विदेश मंत्रालय के अफसरों को क्या यह पता नहीं है कि भारत-पाक संबंधों का सबसे बड़ा रोड़ा है- भारत-भय ! भारत ने पहले हमारा कश्मीर छीन लिया, अब वह बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान तोड़ेगा- यह सबसे बड़ी दहशत पाकिस्तानी लोगों के दिल में वहां की फौज ने बैठा दी है। जब तक भारत इस निराधार दहशत को दूर नहीं करेगा, नेताओं की मीठी-मीठी बातों की ये गोलियां बेअसर ही साबित होंगी। हम यह न भूलें कि पाकिस्तानी फौज और गुप्तचर विभाग लगभग खुद-मुख्तार हैं।

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